राजनैतिक संरक्षण : प्रशासनिक कार्य में बाधा

नयी दिल्ली ।  आज़ाद भारत मे 1861 के अंग्रेज़ी पुलिस कानून से पुलिस का संचालन ही सबसे बड़ी कमी और फेलियर है सिस्टम की, कारण इसके अधिकतर नियम अंग्रेज़ो द्वारा दमन करने के लिए बनाए गए ।



समाज सेवी बबिता शुक्ल ने दिल्ली दंगा में मारे गये पुलिस कर्मियों को श्रद्धांजलि देने के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा  आज़ाद भारत मे 1861 के अंग्रेज़ी पुलिस कानून से पुलिस का संचालन ही सबसे बड़ी कमी और फेलियर है सिस्टम की, कारण इसके अधिकतर नियम अंग्रेज़ो द्वारा दमन करने के लिए बनाए गए ,इसके अनुसार आप लाठी खा सकते है पकड़ नही सकते, उस जमाने मे जो अमर्यादित नियम थे उनके माध्यम से आज की पुलिस का संचालन ही सबसे बड़ा अपवाद और कलंक है इस आज़ाद भारत की गुलाम पुलिस प्रणाली पर, 18 से 21 घण्टे जानवरो की तरह काम करनेवाले अवसाद में जीनेवाले से आप मानवीय आचरण की उम्मीद नही कर सकते, आप सत्य कह रहे पुलिस को इस प्रकार ढाल दिया गया है कि वो चाहे तो भी उनका आचरण अमानवीय ही लगता है ,क्योंकि AC  में बैठे अफ़सर जिस प्रकार के कार्य उनसे करवाते हैं वो जग जाहिर है। इसके जिम्मेदार समाज के हर वो बुद्धिजीवी है जो मोडलपोलिसेक्ट 2006 पर बात नही करते या उसे लागू करवाने की दिशा में जाना नही चाहते। सामाजिक दायित्व स्व हम सब और पहले ओहदे पर बैठे हर वो बुद्धिजीवी भाग रहे जो ये कार्य कर सकते है। 


उन्होने कहा बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें पुलिस कर्मियों द्वारा उठाई जा रही परेशानियों के बारे में पता हो. कितने लोगों को पता है की पुलिस वालों की ड्यूटी का कोई निश्चित समय नहीं होता. दस घंटे की ड्यूटी करने के बाद भी जरुरत पड़ने पर उन्हें फिर से ड्यूटी पर वापिस बुला लिया जाता है. उन्हें ना तो कोई ओवरटाइम मिलता है और ना ही उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जाता है. इन से अधिकतर सरकारी मकान के न मिल पाने पर बैरकों में ही रहने को मज़बूर होना पड़ता हैं ऐसे ही जब भी कोई त्यौहार आता है, कोई जलसा, रैली या प्रदर्शन होता है तो सुचारू क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस के जवानों को लगातार भूखे प्यासे घंटों खड़े रहने पर मजबूर होना पड़ता है. असामाजिक तत्वों या उग्र प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई करने पर कई बार उनकी जान भी खतरे में पड़ जाती है.  देश में अधिकतर पुलिस कर्मी तो नेताओं और उनके घरवालों को कई चक्रों की सुरक्षा प्रदान करने, धरनों और विरोध के जलूसों या दंगों को रोकने  में लगे हुए  हैं. ऐसे में पुलिस चाहते हुए भी आम आदमी की सुरक्षा  पर अधिक ध्यान नहीं दे पाती. पुलिस अफ़सरों पर राजनेताओं का बहुत दबाव रहता है जिसके होते वो अपनी खीज मतहतों पर और मतहत कर्मचारी जनता पर उतारते हैं. भ्रष्टाचार तो सर्वव्यापी बन चुका है उसके लिये अकेली पुलिस को दोष देना कहाँ तक उचित है. 


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