अयोध्या विध्वंस काण्ड : आडवाणी, जोशी, उमा भारती सहित सभी बरी
(संतोष दूबे)
नई दिल्ली। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाये जाने के मामले में अपना फैसला पढ़ते हुए जज एसके यादव ने कहा कि ये घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, संगठन के द्वारा कई बार रोकने का प्रयास किया गया। जज ने अपने शुरुआती कमेंट में कहा कि ये घटना अचानक ही हुई थी। इसके साथ सभी 32 आरोपियों के बरी कर दिया गया है। अदालत ने यह माना है कि सीबीआई ने जो आरोप लगाए हैं उसके साक्ष्य नहीं मिले हैं।
28 साल पुराने अयोध्या के विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया । कोर्ट के फैसले पर देशभर की निगाहें रहीं। क्योंकि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत कुल 32 लोग आरोपी थे। बाबरी विध्वंस मामले में कुल 49 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। इनमें से 17 का निधन हो चुका है। तो चलिए जानते हैं क्या है ये मामला, कब-कब क्या हुआ और कौन सी हैं धाराएं थीं।
केस नंबर 197
6 दिसंबर1992 को विवादित ढांचे को पूरी तरह से ध्वस्त होने के बाद थाना राम जन्मभूमि, अयोध्या के प्रभारी पीएन शुक्ल ने शाम पांच बजकर पन्द्रह मिनट पर लाखों अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा कायम किया। इसमें बाबरी मस्जिद गिराने का षड्यंत्र, मारपीट और डकैती शामिल है।
केस नंबर 198
6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे के सम्पूर्ण विध्वंस के लगभग दस मिनट बाद एक अन्य पुलिस अधिकारी गंगा प्रसाद तिवारी ने आठ लोगों के खिलाफ राम कथा कुंज सभा मंच से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धार्मिक उन्माद भडकाने वाला भाषण देकर बाबरी मस्जिद गिरवाने का मुकदमा कायम कराया।
नामजद अभियुक्त - अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा। भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए ,153बी , 505, 147 और 149 के तहत यह मुकदमा रायबरेली में चला। बाद में लखनऊ सीबीआई कोर्ट में चल रहे मुकदमे में शामिल कर लिया गया।
सीबीआई ने सभी 49 मामलों में चालीस अभियुक्तों के खिलाफ संयुक्त चार्जशीट फ़ाइल की। सीबीआई ने बाद में 11 जनवरी 1996 को 9 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ पूरक चार्जशीट फाइल की। स्पेशल जज अयोध्या प्रकरण जेपी श्रीवास्तव ने 9 सितंबर 1997 को आदेश किया कि सभी 49 अभियुक्तों के खिलाफ सभी 49 मामलों में संयुक्त रूप से मुकदमा चालाने का पर्याप्त आधार बनता है क्योंकि ये सभी मामले एक ही कृत्य से जुड़े हैं। जज ने सभी अभियुक्तों को 17 अक्टूबर 1997 को आरोप निर्धारण के लिए तलब किया।आडवाणी समेत 33 अभियुक्त स्पेशल जज के इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट चले गए थे। लगभग साढ़े तीन साल की सुनवाई के बाद 12 फरवरी 2001 को हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जगदीश भल्ला ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत ने संयुक्त चार्जशीट को स्वीकार करके कोई गलती नही की है क्योंकि ये सभी अपराध एक ही षड्यंत्र से जुड़े हैं और उनके सबूत भी एक जैसे हैं, भले ही उनके लिए 49 अलग अलग मुकदमे दायर किए गए। हाई कोर्ट ने स्पेशल जज जेपी श्रीवास्तव ने 9 सितम्बर 1997 को 48 मुकदमों में आरोप निर्धारण के आदेश को भी सही माना। मगर न्यायमूर्ति भल्ला ने अपने आदेश में कहा कि स्पेशल जज को क्राइम नंबर 198 के ट्रायल का क्षेत्राधिकार नही था, चूँकि इस मामले को रायबरेली से लखनऊ की विशेष अदालत को ट्रांसफर करने के बारे में हाई कोर्ट से परामर्श नही किया गया। न्यायमूर्ति जगदीश भल्ला ने यह भी कहा कि राज्य सरकार चाहे तो इस कानूनी त्रुटि को दूर करने के लिए नई अधिसूचना जारी कर सकती है।
हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद 4 मई 2001 को लखनऊ की विशेष अदालत के जज एसके शुक्ला ने आदेश किया कि जब तक हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार क्षेत्राधिकार संबंधी कानूनी खामी दूर नही कर दी जाती, फिलहाल क्राइम नम्बर 198 का ट्रायल पृथक कर ड्रॉप किया जा रहा है। क्राइम नम्बर 198 में आडवाणी समेत केवल आठ अभियुक्त नामजद थे. मगर जज ने उसमे तेरह और अभियुक्तों को जोड़कर 21 अभियुक्तों के खिलाफ ट्रायल रोक दिया।
हाई कोर्ट आदेश के मुताबिक सीबीआई ने 27 जनवरी 2003 को रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में आडवाणी समेत आठ लोगों के खिलाफ भड़काऊ भाषण का मुकदमा बहाल करने को कहा। मुकदमा चालू हुआ, लेकिन स्पेशल ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट विनोद कुमार सिंह ने 19 सितम्बर 2003 को आडवाणी को बरी करते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी और अशोक सिंघल समेत केवल सात अभियुक्तों के खिलाफ आरोप निर्धारण कर मुकदमा चलाने का निर्णय किया।
इस आदेश के खिलाफ भी हाई कोर्ट में अपील हुई और दो साल बाद छह जुलाई 2005 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पहली नजर में सभी आठों अभियुक्तों के खिलाफ मामला बनता है। इसलिए आडवाणी को बरी करना ठीक नही। इस तरह आडवाणी समेत आठ लोगों पर रायबरेली कोर्ट में मुकदमा बहाल हो गया।
सीबीआई का तर्क था कि आडवाणी और अन्य सात लोग मुकदमा नंबर 197 की विवेचना में भी विवादित ढांचा गिराने के षड्यंत्र के दोषी हैं। इसलिए उन पर रायबरेली के अलावा लखनऊ कोर्ट में भी मुकदमा चलना चाहिए. लेकिन सीबीआई ने इसके लिए लखनऊ कोर्ट में कोई पूरक चार्जशीट दाखिल नहीं की।
सीबीआई ने स्पेशल जज के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल करके कहा कि अगर क्राइम नंबर 198 का ट्रायल अलग कर दिया जाता है तो भी आडवाणी समेत सभी 21 अभियुक्त क्राइम नम्बर 197 में विवादित ढांचा गिराने के षड्यंत्र के अभियुक्त हैं। इसलिए उन पर भी लखनऊ की विशेष अदालत में मुकदमा चलना चाहिए।
दस साल बाद 20 मई 2010 को हाई कोर्ट के जस्टिस एके सिंह ने सीबीआई की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए स्पेशल कोर्ट लखनऊ द्वारा केस नम्बर 198 में आडवाणी, कल्याण सिंह और ठाकरे समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा स्थगित करने के आदेश को सही ठहराया। हाई कोर्ट के आदेश के बाद 17 अगस्त 2010 को लखनऊ कोर्ट ने जीवित बचे अभियुक्तों को तलब कर उनके खिलाफ आरोप निर्धारित किए और 17 साल बाद ट्रायल शुरू हुआ। सीबीआई ने 9 फरवरी 2011 को सुप्रीम कोर्ट में अपील करके मांग की है कि हाई कोर्ट के इस आदेश को खारिज करते हुए आडवाणी समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ विवादित ढांचा गिराने के षड्यंत्र एवं अन्य धाराओं में मुकदमा चलाया जाए।
19 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में का आदेश पारित कर रायबरेली की विशेष अदालत में चल रही कार्यवाही को लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में स्थानांतरित कर दिया। साथ ही इस मामले के अभियुक्तों पर आपराधिक षडयंत्र के तहत भी आरोप तय करने का आदेश दिया। साथ ही पूर्व में आरोप के स्तर पर डिस्चार्ज किये गये अभियुक्तों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने का आदेश दिया।
18 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के अनुपालन में सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) ने डिस्चार्ज हो चुके 13 अभियुक्तों में छह अभियुक्तों को जरि, समन तलब किया। क्योंकि इनमें छह अभियुक्तों की मौत हो चुकी थी। जबकि राज्यपाल होने के नाते कल्याण सिंह पर आरोप नहीं तय हो सकता था। लिहाजा उन्हें तलब नहीं किया या था।
30 मई 2017 को सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) ने अभियुक्त , लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा व विष्णु हरि डालमिया पर आईपीसी की धारा 120 बी (साजिश रचने) का आरोप मढ़ा। लिहाजा इन सभी अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 149, 153,, 153बी व 505 (1)बी के साथ ही आईपीसी की धारा 120 बी के तहत भी मुकदमे की कार्यवाही शुरू हुई। लेकिन इसके बाद विष्णु हरि डालमिया की मौत हो गयी।
31 मई 2017 से इस मामले में अभियोजन की कार्यवाही शुरू हुई ।
13 मार्च 2020 को सीबीआई की गवाही की प्रक्रिया व बचाव पक्ष की जिरह भी पूरी, 351 वाह व 600 दस्तावेजी साक्ष्य सौंपे।
4 जून 2020 से अभियुक्तों का सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज होना शुरू ।
28 जुलाई 2020 को 32 में 31 अभियुक्तों के सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज होने की कार्यवाही पूरी। जबकि एक अभियुक्त ओम प्रकाश पांडेय फरार घोषित हुए।
13 अगस्त 2020 को अभियुक्त ओम प्रकाश पांडेय का आत्मसमर्पण, जमानत पर रिहा, बयान दर्ज। इधर, कल्याण सिंह का सफाई साक्ष्य दाखिल।
14 अगस्त 2020 को सफाई सा{य की प्रक्रिया पूरी मानते हुए विशेष अदालत ने सीबीआई को लिखित बहस दाखिल करने का दिया आदेश।
18 अगस्त 2020 को सीबीआई ने 400 पन्नों की लिखित बहस दाखिल की। बहस की प्रति बचाव पक्ष को भी मुहैया कराई गई।
24 अगस्त 2020 को अभियोजन के दो गवाह हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक ने लिखित बहस दाखिल करने की अर्जी दी।
25 अगस्त 2020 को अर्जी खारिज
26 अगस्त 2020 को बचाव पक्ष को लिखित बहस दाखिल करने का अंतिम मौका
31 अगस्त 2020 को सभी अभियुक्तों की ओर से लिखित बहस दाखिल। बहस की प्रति अभियोजन को भी मुहैया कराई गई।
एक सितंबर 2020 को दोनों पक्षों की मौखिक बहस भी पूरी।
16 सितंबर 2020 को अदालत ने 30 सितंबर को अपना फैसला सुनाने का आदेश जारी किया।
ये हैं 32 अभियुक्तों के नाम
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डा- राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश वर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोश दूबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण सिंह, कमलेश्वर त्रिपाठी, रामचंद्र, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धमेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ व धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।
विध्वंस से पहले की टाइमलाइन
1528 - मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।
1885 - महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
1949 - विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद के अंदर रामलला की मूर्तियां लगाई गईं।
1950 - रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल सिमला विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।
1950 - परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।
1959 - निर्मोही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।
1981 - उत्तरप्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।
1 फरवरी 1986 - स्थानीय अदालत ने सरकार को हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।
14 अगस्त 1986 - इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
6 दिसम्बर 1992 - रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया।
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