नहीं मिल रहे फिजीशियन, जनता परेशान, आईएमए चुप, प्रशासन से गुहार

 

                       (संतोष दूबे) 

बस्ती (उ.प्र.) । वैश्विक महामारी कोरोना (कोविड - 19) की दूसरी लहर में बढ़ रहे केसेज के चलते सरकारी अस्पतालों की ओपीडी बन्द कर दी गयी है। स्वास्थ्य महकमे और जिला प्रशासन का पूरा ध्यान कोरोना पर केन्द्रित है। इन सबके बीच साधारण जरुरतों वाले मरीजों को ढूंढ़ने से भी कोई डॉक्टर नहीं मिल रहा है। शहर के अन्दर कोई प्राइवेट प्रेक्टिशनर फिजीशियन मरीज नहीं देख रहा है। जिसे फिजीशियन की जरूरत पड़ जाय, उसके लिए हाय तौबा वाली स्थिति है। चिकित्सकों को धरती का भगवान कहा जाता है और इस समय इन्होंने अपने दरवाजे बन्द कर लिए हैं। इतने बड़े मुद्दे पर आई एम ए भी खामोश है। 

    एक तरफ कोविड से बचाव व सावधानी के दृष्टिगत बिना चिकित्सक के पर्चे के कोई दवा मेडिकल स्टोर से न लेने - देने का नियम बनाया गया है, वहीं दूसरी ओर किसी चिकित्सक का उपलब्ध न होना एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। जब डॉ. ही नहीं मिलेंगे, तो पर्चे पर दवा कौन लिखेगा। सरकारी अस्पताल की ओपीडी प्रशासन के निर्देश पर बन्द है। प्राइवेट में 300 से लेकर 500 रु. तक फीस लेकर मरीजों को देखने वालों ने अपने क्लीनिक बन्द कर दिये हैं। आपको अपनी जगह पर बैठकर सेवा करनी है, वो भी अपनी फीस के साथ, फिर क्या दिक्कत है। जैसे पहले लोगों ने पीपीई किट पहनकर पूरा काम किया है। अब भी कर सकते हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि फीस तो सीधे आपकी है। अधिकतर चिकित्सक कमीशन की दवा ऐसी ऐसी लिखते हैं, जिसमें पचास फीसद से अधिक का मुनाफा हो। इतना ही नहीं जांच में भी हिस्सेदारी होती है इनकी। कोरोना के प्रकोप के नाम पर बन्द चिकित्सकों की क्लीनिक से जनता परेशान होकर भटक रही है। इससे नागरिक और अधिक पैनिक हो रहे हैं। जबकि इस महामारी को पैनिक होने से रोकना भी बचाव का बड़ा उपाय है।

 कोरोना योद्धा बने घूमने वालों का सारा नशा उतर गया मालूम होता है। जनता की जेब काट काट कर तिजोरी भरने वाले कथित भगवान पूछने पर कहेंगे, पैसा कमाने की चाहत नहीं है। कमाईये या न कमाईये, मानवता की रक्षा और मानव मात्र की सेवा के लिए पीपीई किट पहनकर दो गज की दूरी और प्लास्टिक का पर्दा लगाकर साधारण समस्याओं को जानकर पर्चे पर दवा तो लिख सकते हैं न। आदमी बावला होकर भटकेगा तो नहीं। और कोविड पैनिक भी नहीं होगा। 
   वर्तमान परिवेश में आम जनमानस भयभीत हो रहा है और जरुरत मन के अन्दर के डर को निकालने की है। क्लीनिक में डॉक्टर मिलते फीस लेते, मरीज का मनोबल बढ़ाते, जो आवश्यक होता दवा लिखते या उचित सलाह देते। जनता के हित में शासन - प्रशासन को इस दिशा में ध्यान देते हुए समुचित कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है, जिससे मन में घर कर रही असुरक्षा की भावना दूर की जा सके। अन्यथा की स्थिति में ये भगवान कहलाने की इच्छा वाले लोग मुंशी प्रेमचंद की कहानी मंत्र के डॉ. चड्ढा हो जाएंगे। शासन प्रशासन द्वारा व्यापक जनहित को देखते हुए जिले के सभी पंजीकृत मेडिकल प्रेक्टिशनर को अपनी सेवाएं लगातार देने के लिए निर्देशित किया जाना नितांत आवश्यक है।

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