स्वतंत्रता आंदोलन की महान वीरांगना तारा रानी श्रीवास्तव : आजादी का अमृत महोत्सव
!! देश की आज़ादी के 75वर्ष !!
"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज एक ऐसी गुमनाम महिला स्वतन्त्रता सेनानी की कहानी है जिन्हें अपने देश के तिरंगे से बेहद प्रेम था देश के लिये मर मिटने को तैयार थीं जिसने अँग्रेजों की गोली से शहीद हुये पति को खोकर भी फहराया था तिरंगा और अपने पति की जान से भी ज्यादा अपने देश के तिरंगे को दिया था सम्मान। इसी कड़ी में तारकेश्वर टाईम्स 75 वीरांगनाओं को प्रकाशित कर रहा है।
प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव
19 - "तारा रानी श्रीवास्तव" - एक भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी थीं जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया लेकिन इनकी शहादत गुमनाम रही। देश की आज़ादी के बाद उनके योगदान को भुला दिया गया। वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन का भी हिस्सा थीं। इनका जन्म बिहार के पटना से नजदीक सारण में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही इनकी शादी बिहार के सिवान निवासी एक स्वतन्त्रता सेनानी फुलेन्दु बाबू से हुई थी। शादी के बाद वे अपने पति के हर कदम पर साथ रहीं।तारा रानी श्रीवास्तव बहुत ज्यादा पढी लिखी या डिग्रीधारक नहीं थी, परन्तु देश की आज़ादी की बात बख़ूबी समझती थीं। अपने पति की तरह ही उनके ह्रदय में भी अपार देश प्रेम था। जिस समय औरतों को चाहरदीवारी के अन्दर रहकर जीवन बिताने को सिखाया जाता था तारा रानी अपने आसपास व गाँव गाँव जाकर देश की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिये महिलाओं को प्रेरित करती थीं। जब अँग्रेजों का अत्याचार भारत के लोगों द्वारा असहनीय हो चुका था। तब 08 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी जी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का आग़ाज़ किया। इस आन्दोलन का एक ही उद्देश्य था - "करो या मरो"। उस समय भारतीय जितना अँग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिये तत्पर थे उतनी ही क्रूरता से अँग्रेज इस आन्दोलन को दबाने में लगे थे। इसलिये महात्मा गाँधी जी के भाषण के बाद बहुत से भारतीय सेनानियों को बिना किसी कारवाई के अँग्रेजों ने जेलों में डाल दिया था परन्तु आम जनता जाग चुकी थी। महात्मा गाँधी जी के भाषण के चन्द घण्टों के बाद ही हजारों की संख्या में लोगों ने अँग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह करना शुरू कर दिया था। महात्मा गाँधी जी के आह्वान पर 12अगस्त 1942 को तारा रानी व उनके पति फुलेन्दु बाबू पुरूष और महिलाओं का हुजूम लेकर निकल पड़े सिवान पुलिस स्टेशन की छत पर देश का तिरंगा फहराने। महिलाओं की भी भारी भीड़ थी। इस भीड़ को रोकने के लिये पुलिस ने पूरी कोशिश की जब पुलिस की धमकियों से भी जन-सैलाब नहीं रूका तो पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। जब पुलिस के डंडे भी प्रदर्शनकारियों को रोकने में नाकामयाब रहे तो पुलिस ने गोली चलाना शुरू कर दिया तो गोली फुलेन्दु बाबू को लग गयी और वे घायल होकर गिर पड़े! तारा रानी श्रीवास्तव दौड़कर उनके पास गयीं और खून से लथपथ अपने पति के घाव पर अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर पट्टी बाँध दिया। यह दिन तारा के लिये कितना दर्दनाक दिन था। एक स्त्री अपने पति को खून से लथपथ देखकर कितना तड़पी होगी यह सोचकर भी रूह काँप जाती है। फिर जो उन्होंने किया वह कोई आम स्त्री नहीं कर सकती थी। वह वहीं से फिर वापस मुड़ी और पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़ी क्योंकि अगर वह रूक जाती तो सारी स्त्रियों का मनोबल टूट जाता और वे भी पीछे हट जातीं। उन्हें खुद के दु:ख से ज्यादा भारत पर हो रहे अत्याचार दिख रहा था। तिरंगा फहराने का उनका संकल्प था और उन्होंने तिरंगा फहराया। तिरंगा फहराकर जब वे पति के पास वापस आयीं तब तक उनके पति की मौत हो चुकी थी लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी उनके अंतिम संस्कार में भी वह खुद को मजबूत बनाकर खड़ी रहीं। 15 अगस्त 1942 को छपरा में देश के लिये उनके पति की कुर्बानी के सम्मान में प्रार्थना सभा रखी गयी थी उस सभा में भी उन्होंने अपने मजबूत ह्रदय का परिचय दिया और लोगों को ढाढस बँधाया। अपने पति को खोने के बाद भी वे आज़ादी और विभाजन के दिन 15अगस्त 1947 तक महात्मा गाँधी जी के आन्दोलनों का हिस्सा रहीं। अपने पति की शहादत को व्यर्थ नहीं होने दिया अपने देश को स्वतन्त्रता दिलाने के सपना को उन्होंने पूरा किया।आइये ऐसी भारतीय वीरांगना को हम सलाम करें! सादर कोटि कोटि नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता की जय!
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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।