क्रांतिपुत्री शांति घोष ने ब्रिटिश अधिकारी को मारी थी गोली : आजादी का अमृत महोत्सव

 

               !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !!

 "आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज हैं - "शांति घोष" भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वह क्रान्तिपुत्री जिन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में अपनी सहपाठी सहेली सुनीति चौधरी के साथ मिलकर ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। 

                               प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

40 - शांति घोष महान वीरांगना शांति घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 22 नवम्बर 1916 को हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ घोष था जो कोमिला कॉलेज में प्रोफेसर थे और साथ ही राष्ट्रवादी थे। उनकी देशभक्ति की भावना ने कम उम्र में ही शांति घोष को अधिक प्रभावित किया था।वह कोमिला फैजुन्निसा बालिका विद्यालय में कक्षा- आठ की छात्रा थीं। बचपन से ही वे भारतीय क्रान्तिकारियों के बारे में पढती रहती थीं। मात्र 15 वर्ष की आयु में अपनी सहपाठी प्रफुल्ल नलिनी के माध्यम से "युगान्तर पार्टी में शामिल हो गयीं और क्रान्तिकारी कार्यों के लिए हथियार चलाने का आवश्यक प्रशिक्षण लेने लगीं। "युगान्तर पार्टी" एक क्रान्तिकारी संगठन था जो उस समय ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर ब्रिटिश राज में खलबली मचाने के लिए प्रसिद्ध था। साल 1930 देश में सविनय अवग्या आन्दोलन का समय था। उस समय (त्रिपुरा) कोमिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स स्टीवंश आन्दोलन की गतिविधियों को दबाना चाहता था।

शांति घोष और सुनीति चौधरी ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचार से दुखी थी और ब्रिटिश अधिकारियों को सबक सिखाना चाहती थीं। 14 दिसम्बर 1931 को शांति घोष अपनी सहपाठी सहेली सुनीति चौधरी के साथ मिलकर कोमिला जिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स स्टीवंस के कार्यालय पहुँची और अपना नाम बदलकर मिलने के लिए एक स्लिप भेजीं। मिलने का कारण पूछे जाने पर उन्होंने जवाब दिया कि लड़कियों के लिए तैराकी की व्यवस्था हेतु आवेदन लेकर आयी हैं। जैसे ही अँग्रेज मजिस्ट्रेट से आमना सामना हुआ। दोनों सहेलियों ने ठंड से बचने के लिए जो शॉल ओढ़ रखा था उसके नीचे से अपनी पिस्तौल निकाली और अँग्रेज मजिस्ट्रेट के सीने में गोलियों की बौछार कर दी। अँग्रेज मजिस्ट्रेट गोली लगने से तुरन्त गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी। गोली की आवाज़ से चारो तरफ अफरा तफरी मच गयी और शांति घोष व सुनीति चौधरी को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य को बल्कि पूरे देश को अचम्भित कर दिया था। किसी को उनकी बहादुरी पर हैरानी थी तो कोई उनके हौसले की वाहवाही करते नहीं थक रहा था। साल 1932 कोलकाता हाईकोर्ट ने शांति घोष और सुनीति चौधरी को अँग्रेज मजिस्ट्रेट चार्ल्स स्टीवंस की हत्या का दोषी पाया और नाबालिग होने की वजह से उन्हें फाँसी की सजा न देकर 10 वर्ष कैद की सजा सुनायी थी।
शांति घोष और सुनीति चौधरी हालांकि फाँसी की माँग कर रही थीं, वे अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो जाना चाहती थीं। 1939 में महात्मा गाँधी और भारतीय क्रान्तिकारियों के प्रयास से शांति घोष और सुनीति चौधरी सात साल तक जेल की यातनायें सहने के बाद जेल से रिहा हो गयीं। जेल से निकलने के बाद शांति घोष ने अपनी पढाई पूरी की साथ ही स्वतन्त्रता संग्राम में भी सक्रिय रहीं। प्रोफेसर चितरंजनदास से शादी की। सन् 1952 से 1962 और 1967 - 68 में पश्चिम बंगाल विधान परिषद में कार्यरत रहीं। शांति घोष ने "अरूणबहनी" नाम से अपनी आत्मकथा लिखी। 28 मार्च 1989 को उन्होंने अपने जीवन की आखिरी सांस ली। शांति घोष की आवाज भी बहुत मधुर थी वे गायन भी करती थीं। क्रान्तिकारी वीरांगना शांति घोष और सुनिति चौधरी ने अपना युवा जीवन हँसते मुस्कुराते हुए बहादुरी से मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया था और सम्पूर्ण देश को अचम्भित कर दिया था।

आइये संसार की सबसे कम उम्र की साहसी और बहादुर महिला क्रान्तिकारी शांति घोष को हम सैल्यूट करें! सादर नमन! भावपूर्ण सादर श्रद्धान्जलि! जय हिन्द!.जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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