देश की दूसरी महिला राज्यपाल स्वतंत्रता सेनानी पद्मजा नायडू : आजादी का अमृत महोत्सव

              !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज मैं देश की एक ऐसी महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी की बात कर रही हूँ जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया तथा अपनी क्रान्तिकारी देशभक्त माँ जो देश के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनीं थीं। वे अपनी माँ के ही नक्शेकदम पर चलकर माँ की तरह ही राज्यपाल बनीं। हमारे देश की माँ बेटी की एक ही जोड़ी है, जिन्होंने अलग अलग राज्यों की पहली और दूसरी राज्यपाल बनने का गौरव हासिल किया। देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली दोनों महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हैंं। देश का एक ही ऐसा परिवार है- "नायडू परिवार"

                               प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव


38 - पद्मजा नायडू अपनी माँ की तरह ही देश के लिए समर्पित महिला स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हैं "पद्मजा नायडू"। ये "पद्मविभूषण" से सम्मानित पश्चिम बंगाल की पहली महिला राज्यपाल बनी थीं। ये एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं। उनका जन्म - हैदराबाद में 17 नवम्बर 1900 को हुआ था। पिता का नाम - डॉ. एम गोविन्दराजुलु नायडू था, जो एक चिकित्सक थे। माता का नाम सरोजिनी नायडू था। जो महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, सुप्रसिद्ध कवियित्री, देश की व उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल थीं। येे भारत कोकिला के नाम से प्रसिद्ध थीं और भारत देश के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक थीं। वह अपनी माँ से बहुत अधिक प्रभावित थीं। पद्मजा नायडू एक सामाजिक सेविका और एक राजनायिक थीं। मात्र 21 वर्ष की आयु में ही वे हैदराबाद के निजामशासित रियासत में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की संयुक्त संस्थापिका बनीं। 1942 के "भारत छोड़ो आन्दोलन" में भाग लेने के कारण अँग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया था। उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन में भाग लेकर विदेशी सामानों का बहिष्कार करने तथा भारतीय उत्पाद खादी अपनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित व प्रेरित किया था।

 पद्मजा नायडू को 15 अगस्त 1947 को देश का पहला स्वतन्त्रता दिवस मनाने के लिए "राष्ट्रीय ध्वज" प्रस्तुति समिति के सदस्यों में से एक के रूप में चुना गया था। उनका पं. जवाहरलाल नेहरू परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध था। सन् 1950 में भारतीय संसद के लिए चुनी गयीं और 1956 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। वह देश की दूसरी एवम पश्चिम बंगाल की पहली महिला राज्यपाल बनीं थीं। ये सन् 1956 से 1961 तक राज्यपाल थीं।
दार्जिलिंग में "पद्मजा नायडू हिमालयन प्राणी उद्यान" उनके नाम पर रखा गया था। जो भारत का सबसे ऊँचाई वाला चिड़िया घर है। भारत सरकार द्वारा 1962 में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार "पद्मविभूषण" से सम्मानित किया गया था। वह 1971 से 1972 तक भारतीय रेडक्रॉस की अध्यक्ष थीं, जो एक स्वैच्छिक मानवीय संगठन 
है। जो मानव जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा करता है। इसके अलावा वह भारत सेवक समाज, नेहरू मेमोरियल फंड और अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड से भी जुड़ी हुई थीं।
 सन् 1970 के दशक में पद्मजा नायडू ने अपनी माँ की "द गोल्डन थ्रेसहोल्ड" को हैदराबाद विश्वविद्यालय को सौंप दिया था। 02 मई 1975 को 74 वर्ष की आयु में अस्वस्थ रहने के कारण नई दिल्ली में उनका निधन हो गया। पद्मजा नायडू अपनी माँ के समान ही अपना सारा जीवन देश हित में समर्पित कर दिया था। राष्ट्रीय सेवा और इसके साथ ही उनका मानवीय दृष्टिकोण हमेशा याद किया जाता है। वह कम उम्र में ही अपनी असाधारण उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध थीं।

 आइये हम सभी की प्रेरणाश्रोत पद्मविभूषित समाज सेविका पश्चिम बंगाल की पहली महिला राज्यपाल महान स्वतन्त्रता सेनानी को हम प्रणाम करें! सादर शत शत नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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