नजर आया मोहर्रम का चांद, इमामबाड़ों में गूंजी सदाए हुसैन

 

                    (मनीष श्रीवास्तव 'अंकुर') 

- पहली मोहर्रम आज, कर्बला के शहीदों की मनाई जाएगी याद

- इमामबाड़ों, मस्जिदों में आज से शुरू होगा मजलिसों का सिलसिला

बस्ती (उ.प्र.)। इंसानी तारीख के सबसे दर्दनाक वाकए की याद मनाने के लिए हर साल अरबी माह मोहर्रम में कर्बला के शहीदों की याद मनाई जाती है। मोहर्रम का चांद नजर आते ही पैगम्बरे-इस्लाम व उनकी आल के मानने वालों में गम की लहर दौड़ जाती है। कर्बला में नवासए रसूल हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों को यजीद इब्ने माविया की फौज ने तीन दिन तक भूखा-प्यासा रखने के बाद शहीद कर दिया था। शहीद होने वालों में छह माह का अली असगर भी था। हर साल इसी गम की याद दुनिया में मनाई जाती है।

मोहर्रम का चांद होने के बाद शनिवार रात इमामबाड़ा शाबान मंजिल, गांधी नगर में मजलिस का आयोजन किया गया। मजलिस में सोगवार काले कपड़े पहनकर पहुंचे, सभी की आखें अश्कबार नजर आ रही थीं, उनके चेहरों से ऐसा मालूम हो रहा था कि कर्बला का वाकया कल ही हुआ है। इमामबाड़ों में पहुंचकर महिलाओं ने अपने सोग के प्रतीक चूड़ी आदि का त्याग किया। 
मजलिस को खिताब करते हुए मौलान हैदर मेंहदी ने कहा कि कर्बला की घटना के बाद पैगम्बर के घर में हर साल मोहर्रम आने पर मजलिस का एहतमाम किया जाता रहा है। शहादत की याद में अहलेबैत आंसू बहाते रहे। उसी परम्परा को आज तक कायम रखते हुए मजलिसों का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि कर्बला की घटना में एक ओर नबी का नवासा था, तो दूसरी ओर इस्लाम का नकाब ओढ़े हुए सामंती ताकतें थीं। हम दुनिया को 14 सौ साल से हुसैनी व यजीदी इस्लाम में फर्क बता रहे हैं। हुसैनी इस्लाम शांति, प्रेम व सौहार्द का प्रतीक बना। यही कारण है कि आज दुनिया में हर कौम में इमाम हुसैन के मानने वाले मिलेंगे। मोहम्मद रफीक, सुहैल हैदर, सफदर रजा ने सोज व सलाम पेश किया। इस मौके पर जीशान रिजवी, हसनैन रिजवी, शमसुल हसन काजमी, राजू, जैन, तकी हैदर, सरवर हुसैन, जर्रार हुसैन, शम्स आबिद सहित अन्य मौजूद रहे। 

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