महान स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी अमृत कौर : आजादी का अमृत महोत्सव

 

              !! देश की आज़ादी के 75 वर्ष !! 

"आज़ादी का अमृत महोत्सव" में आज मैं देश की एक प्रख़्यात गाँधीवादी महिला स्वतन्त्रता सेनानी की बात कर रही हूँ, जिनका जन्म एक राजघराने में हुआ था। जलियाँवाला बाग नरसंहार देखकर तथा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के सिद्धान्तों से प्रभावित होकर अपने भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर भारतीय स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो गयीं और कूद पड़ीं देश को आज़ाद कराने। उन्होंने पंजाब में देश की आज़ादी और लोगों की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी था तथा स्वतन्त्रता और सांप्रदायिक सद्भाव के संदेश का प्रचार करने के लिए पूरे देश की यात्रा की थी। राजकुमारी अमृत कौर स्वतन्त्र भारत की पहली कैबिनेट मंत्री पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं तथा 1950 में वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहली महिला अध्यक्ष पहली एशियाई महिला थींं। उनकी ख़्याति देश में ही नहीं पूरे संसार में विख़्यात थी।

                           प्रस्तुति - शान्ता श्रीवास्तव

73 - राजकुमारी अमृत कौर एक महान स्वतन्त्रता सेनानी समाजसेविका और विदुषी महिला थीं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ नगर में 02 फरवरी 1889 को हुआ था। उनके पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला पंजाब के राजा थे और माता का नाम रानी हरनाम सिंह था। राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों की अकेली बहन थीं। उनके पिता राजा हरनाम सिंह ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था। राजकुमारी अमृत कौर की उच्च शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एम.ए करने के उपरान्त वह भारत वापस लौटीं। उनका देश और लोगों के प्रति सेवाभाव का जज़्बा प्रेरणादायक रहा। उनके पिता को गोपाल कृष्ण गोखले सहित कई काँग्रेस पार्टी नेताओं का विश्वास प्राप्त था।

राजकुमारी कौर इंग्लैण्ड से भारत वापस लौटने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के सिद्धान्तों से प्रभावित हुईं जब उन्होंने मुम्बई में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को संबोधित करते हुए उन्हें सुना था और उन्होंने गाँधीवादी विचारों और देश के लिए उनके दृष्टिकोण के प्रति आकर्षित महसूस की। जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद राजकुमारी कौर को ब्रिटिश राज से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के महत्व का एहसास हुआ और उन्होंने जालन्धर में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी से मुलाक़ात की और उनसे जुड़ने की इच्छा जताई। स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेना राजकुमारी के लिए मुश्किल नहीं था तो आसान भी नहीं था। महात्मा गाँधी जी ने राजकुमारी की परीक्षा लेने के लिए सबसे पहले उन्हें राजकुमारी को सेवाग्राम में हरिजनों की सेवा करने और साफ सफाई का काम दिया और रहने के लिए आश्रम में एक छोटा सा कमरा।
 उस ज़िम्मेदारी को राजकुमारी कौर ने अच्छे से निभाया और महात्मा गाँधी जी की परीक्षा में सफल हो गयीं। उसके बाद वह महात्मा गाँधी जी की अनुयायी और सचिव हो गयीं। महात्मा गाँधी जी से उनका सम्पर्क हुआ और सम्पर्क अन्त तक बना रहा। वे 16 वर्षों तक महात्मा गाँधी जी की सचिव का काम किया। वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हुईं और भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के साथ साथ भारत में सामाजिक सुधार गतिविधियों में भी योगदान किया था। उन्होंने महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही 1927 में "अखिल भारतीय महिला सम्मेलन" की सह स्थापना की थी। सन् 1930 में उसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में साल 1930 में जब दांडी मार्च की शुरूआत हुई,  तब उन्होंने महात्मा गाँधी जी के साथ दांडी यात्रा की और जेल की सज़ा काटी। वर्ष 1937 में (आईएनसी) भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की एक प्रतिनिधि के रूप में पश्चिमोत्तर सीमांतर प्रांत बन्नू सद्भावना मिशन पर गयीं तो ब्रिटिश राज अधिकारियों ने उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बन्द कर दिया। साल 1942 भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और फिर से कैद कर ली गयी थीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें शिक्षा सलाहकार बोर्ड का सदस्य भी बनाया था, जिससे उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान इस्तीफा दे दिया था। सन् 1945 में उन्हें लन्दन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वर्ष 1947 देश की आज़ादी के बाद राजकुमारी अमृत कौर भारत की राजनेता और स्वतन्त्र भारत की कैबिनेट मंत्री बनने वाली देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं। 1950 में वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की अध्यक्ष चुनी गयीं और उस पद को सँभालने वाली पहली महिला और पहली एशियाई महिला बनने का गौरव प्राप्त किया। साल 1947 से 1957 तक वे भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहीं।
नई दिल्ली में देश का पहला "अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान" (एम्स) की स्थापना में एक मज़बूत प्रेरक शक्ति थीं और पहली अध्यक्ष थीं। राजकुमारी कौर 14 वर्षों तक भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी की अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था। वे ट्यूबरक्यूलोसिस एसोसिएशन ऑफ इण्डिया और शुरू से ही हिन्द कुष्ठ निवारण संघ की अध्यक्ष थीं। स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए 1955 में उन्होंने मलेरिया के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था। उन्होंने महिलाओं और हरिजनों के उद्धार के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। वह बाल विवाह और पर्दा प्रथा की सख़्त खिलाफ थीं और उसे लड़कियों की शिक्षा में बड़ी बाधा मानती थीं। वह बाल विवाह और महिलाओं की अशिक्षा को दूर करने पर निरन्तर जोर देती रही थीं। उनका कहना था कि शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। वह महिला अधिकारों की कट्टर समर्थक थीं। उन्होंने "ऑल इण्डिया वूमेंस एजूकेशन फंड एसोसिएशन" की अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। नई दिल्ली "लेडी इर्विन कॉलेज" की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। वह "अखिल भारतीय बुनकर संघ" के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की थी और भारतीय मताधिकार और संवैधानिक सुधार के लिए गठित "लोथियन समिति" तथा ब्रिटिश पार्लियामेन्ट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा था।
राजकुमारी कौर को खेलों से बड़ा प्रेम था। "नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इण्डिया" की स्थापना उन्होंने ही की थी और उस क्लब की अध्यक्ष भी रहीं। उनको टेनिस खेलने का भी बहुत शौक था कई बार उनको टेनिस चैम्पियनशिप भी मिली थी। वे गाँधी स्मारक निधि और जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट की ट्रस्टी तथा दिल्ली म्यूजिक सोसाइटी की अध्यक्ष भी रही थीं। राजकुमारी अमृत कौर एक प्रसिद्ध विदुषी महिला थीं। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय, स्मिथ कॉलेज, वेस्टर्न कॉलेज और मेकमरे कॉलेज आदि से डॉक्ट्रेट मिली थी। उन्हें फूलों से और बच्चों से भी बड़ा प्रेम था। वे बिल्कुल शाकाहारी थींं और सादगी से जीवन व्यतीत करती थीं। बाइबिल के अतिरिक्त रामायण और गीता पढने से उन्हें शांति मिलती थीं। उन्होंने शादी नहीं की। वे अविवाहित थीं। उन्होंने और उनके एक भाई ने शिमला में अपनी पैतृक सम्पत्ति और मकान को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सों के लिए "होलिडे होम" के रूप में दान कर दिया था। वर्ष 1957 से 1964 अपने निधन तक वह राज्य सभा की सदस्य भी रही थीं। "टाइम पत्रिका" ने राजकुमारी अमृत कौर को 20वीं सदी की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था। वे एक राजकुमारी से स्वतन्त्रता आंदोलन का हिस्सा बनना और फिर देश की पहली कैबिनेट मंत्री बनने के बाद "एम्स" की स्थापना में अमूल्य योगदान जैसे कई कार्यों के लिए जानी जाती हैं। 02 अक्टूबर 1964 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें दफनाया नहीं जलाया गया। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में कई बड़े पदों को सुशोभित किया था। एक स्वतन्त्रता सेनानी के साथ साथ देश की प्रभावशाली महिलाओं में उनका नाम गिना जाता है।
आइए महान स्वतन्त्रता सेनानी समाजसेविका देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर जी को सैल्यूट करें! उनसे प्रेरणा लें! सादर नमन! भावभीनी श्रद्धान्जलि! जय हिन्द! जय भारत! वन्दे मातरम! भारत माता जी की जय!

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शान्ता श्रीवास्तव वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये बार एसोसिएशन धनघटा (संतकबीरनगर) की अध्यक्षा रह चुकी हैं। ये बाढ़ पीड़ितों की मदद एवं जनहित भूख हड़ताल भी कर चुकी हैं। इन्हें "महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, कन्या शिक्षा, नशामुक्त समाज, कोरोना जागरूकता आदि विभिन्न सामाजिक कार्यों में योगदान के लिये अनेकों पुरस्कार व "जनपद विशिष्ट जन" से सम्मानित किया जा चुका है।

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