नये संसद भवन में पीएम मोदी ने स्थापित किया सेंगोल "राजदंड"
(प्रशान्त द्विवेदी)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के नए संसद भवन में राजदंड 'सेंगोल' की स्थापना की। तमिलनाडु के सदियों पुराने मठ के आधीनम महंतों की मौजूदगी में 'सेंगोल' की नए संसद भवन के लोकसभा में स्थापना की गई। दरअसल, 'सेंगोल' राजदंड सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने और जनता के प्रति समर्पित रहने का भी प्रतीक रहा है। इसे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के बगल में स्थापित किया गया है।
चोल वंश से है नाता
सेंगोल का इतिहास सदियों पुराना है, इसका रिश्ता चोल साम्राज्य से रहा है। इतिहासकारों की मानें तो चोल साम्राज्य में राजदंड सेंगोल का इस्तेमाल सत्ता के हस्तांतरण के लिए किया जाता था। उस दौर में जब सत्ता हस्तांतरित होती थी, तो मौजूदा राजा दूसरे राजा को सेंगोल सौंपता था। इस परंपरा की शुरूआत चोल साम्राज्य में हुई थी। रामायण - महाभारत के दौर में भी राजदंड 'सेंगोल' को एक राजा से दूसरे राजा को सौंपे जाने का जिक्र मिलता रहा है। 'सेंगोल' के सबसे ऊपर नंदी की प्रतिमा स्थापित है। हिंदू व शैव परंपरा में नंदी समर्पण का प्रतीक है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसको खास महत्व दिया जाता है। 'सेंगोल' का अर्थतमिल में इसे सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है। सेंगोल संस्कृत शब्द 'संकु' से लिया गया है, जिसका मतलब शंख है। सनातन धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। मंदिरों और घरों में आरती के दौरान शंख का इस्तेमाल आज भी किया जाता है।
यहां रखा था सेंगोल
बता दें कि सेंगोल को इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और अब नए संसद भवन में ले जाकर स्थापित कर दिया गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि यह सेंगोल वही है जो स्वतंत्रता के समय पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को दिया गया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात लगभग 10:45 बजे तमिलनाडु के आधीनम महंतों के माध्यम से सेंगोल को स्वीकार किया था। जिसके बाद इसका इस्तेमाल सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया।
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