प्रदूषण रोकने को आगे आईं स्कैंडिनेवियाई समाजसेविकाएं : ग्रीन दीवाली मनाने की अपील

पटाखों के बिना भी त्योहार मनाये जा सकते हैं – डॉक्टर सोनिया स्वीडन , श्रीमती प्रीतपाल नॉर्वे से और श्रीमती चांदनी अरोरा स्वीडन से (स्कैंडिनेवियाई समाज सेविकाएं)

             (विशाल मोदी)

भारत एक ऐसा देश जहाँ आए दिन कोई ना कोई त्योहार आता ही रहता है, कोई ना कोई रस्म, ख़ुशी मनाई ही जाती है। इस साल दीवाली के पर्व से ठीक पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) ने फिर से एक अहम फैसला सुनाया है, जिसके अनुसार दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में, फैलते प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु, पटाखों पर बैन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का 2018 का फैसला बरकरार रहेगा। भारत के कई अन्य राज्यों ने भी पटाखों पर या तो प्रतिबंध लगा दिया है या उन्हें सीमित कर दिया है। पटाखों के रोक पर लिए गए सुप्रीम कोर्ट और कई अन्य राज्यों के फैसलों पर स्कैंडिनेवियाई समाज सेविकायों डॉक्टर सोनिया स्वीडन , श्रीमती प्रीतपाल नॉर्वे से और श्रीमती चांदनी अरोरा स्वीडन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विश्व में तेज़ी से फैलते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पटाखों पर बैन न केवल दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बल्कि सम्पूर्ण विश्व में पूर्णरूप से होना चाहिए क्योंकि आज प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में कई तरह की बीमारियाँ फैली हुई हैं और ग्लोबल वार्मिंग में भी वृद्धि हो रही है।

           (चांदनी अरोरा -स्वीडन)   

पटाखों के कारण छोटे बच्चों, जानवरों, बड़े बजुर्गों, गर्भवती महिलायों और सांस की बीमारियों, जैसे अस्थमा, इत्यादि, से पीड़ित मरीज़ो को बहुत परेशानी होती है। और वैसे भी दीपावली तो दीपों/दीयों का त्योहार है तो फिर यह प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे इतने क्यों जरुरी हैं? पटाखों को जलाने के पीछे मुख्य कारण रौशनी फैलाना है तो क्यों ना रौशनी को हम सरसों के दिये से जला कर फैलाएँ! हम दिवाली या कोई भी तीज त्योहार पटाखों के अलावा और भी कई तरीकों से मना सकते हैं।

            (श्रीमती प्रीतपाल - नार्वे)

घर को मिट्टी से बने दीयों में सरसों का तेल डाल कर जलाकर रौशन करें। वैसे भी हिन्दू धर्म में सरसों के तेल का उपयोग पाठ-पूजा और अन्य धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है। यहाँ तक की सनातन धर्म में तो एक दीये में देसी घी डाल कर और साथ के बाकी दीयों में सरसों का तेल डाल कर जलाने की परम्परा तो बहुत पुरानी है। और अगर ज्यादा रौशनी करनी हो तो बाजार में उपलब्ध इलेक्ट्रिक लाइट्स का भी प्रयोग करे सकते हैं। वो गरीब लोग जिनके घर में खाने-पहनने को नहीं हैं उनको खाने-पहनने का कुछ सामान ले कर दें।

            (डॉ. सोनिया स्वीडन)

घर में मिठाइयाँ एवं व्यंजनों को खुद बनाये और उनका लुत्फ अपने परिवारजन और मित्रों के साथ लें। यहाँ तक की आप अपने पुराने मित्रों से मिलें और उन्हें आमंत्रित करें।

अगर फिर भी आप पटाखे जलना ही चाहते तो ग्रीन पटाखे चुनिए। ग्रीन पटाखे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं जो दूसरे सामान्य पटाखों की तुलना में वायु को प्रदूषित नहीं करते हैं। इनमें आवाज भी कम होती है जिससे ध्वनि प्रदूषण भी पैदा नहीं ही होता। इसमें सामान्य आतिशबाज़ी की तरह बोरियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक एवं हानिकारक तत्व का मिश्रण नहीं होता है, जिससे फलस्वरूप वायु एवं ध्वनि प्रदूषण भी नहीं होता। ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं और यह सामान्य आतिशबाजी की तुलना में 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषण फैलाते हैं।

 अंत में, स्कैंडिनेवियाई समाज सेविकायों की तरफ से आप सब को “हैपी ग्रीन दिवाली” और आपसी भाईचारे के साथ सुरक्षित दिवाली मनाने की अपील।

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